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➤ ऊष्मा (HEAT)-

ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है जिसे कैलोरी में ब्यक्त करते हैं। इसे मापने के लिए कैलोरीमीटर का प्रयोग करते हैं। 

➤ उष्मीय प्रसार (Thermal Expansion)-

जब किसी धातु को ऊष्मा देते है तो उसमे प्रसार(फैलाव) होता है जिसे उष्मीय प्रसार कहते हैं। 



➤ उष्मीय प्रसार तीन प्रकार का होता हैं -

1) रेखीय प्रसार गुणांक ( Linear Expansion)-

यह लम्बाई में होने वाला वृद्धि को दर्शाता हैं। इसे अल्फा (𝜶) द्वॉरा दिखाया जाता हैं। 
 रखिये प्रसार के कारण ही ट्रैन के लोहे के पटरियों में खाली स्थान छोर दिया जाता है ताकि रेखीय प्रसार के लिए उन्हें स्थान मिल सके और वह टेढ़ी न हो। 

नोट- लोहे की पटरियों को जोड़ने के लिए fishplate का प्रयोग होता हैं। 
रेखीय प्रसार(𝜶) = लम्बाई में वृद्धि ➗ प्रारम्भिक लम्बाई ✖ ताप में वृद्धि 

2) क्षेत्रिय प्रसार(Aerial Expansion)-

यह क्षेत्रफल में होने वाला वृद्धि को दर्शाता हैं। इसे बीटा(𝝱) द्वारा दर्शाया जाता हैं। 
क्षेत्रिय प्रसार के कारण ही धातु के वर्त्तन में हुआ छेद तापमान देने पर बढ़ता जाता हैं। 
सीसे के समान गर्म होने पर इसी के कारण चणक जाता हैं। 
क्षेत्रिय प्रसार (𝝱) = क्षेत्रफल में वृद्धि ➗ प्रारम्भिक क्षेत्रफ़ल ✖ ताप में वृद्धि 

3 ) आयतन प्रसार (Cubic Expansion)-

इससे आयतन में होने वाला परिवर्तन को दर्शाया जाता हैं। इसे गामा (𝛾) से ब्यक्त करते हैं। 
आयतन प्रसार(𝛾) = आयतन में वृद्धि ➗ प्राम्भिक आयतन  ✖ ताप में बृद्धि 
 
   𝜶, 𝝱, 𝛾 में संबन्ध - 
           𝜶 :  𝝱  :  𝛾
           1  :  2  :  3 

➤ उष्मा संरचना की विधिया - 
उष्मीय ऊर्जा अणुओ के गति के कारण उत्पन होती हैं। इसकी कई विधिया होती हैं -

1)चालन विधि(Conduction)-

यह धातुओं में होती हैं। इसमें धातु के अणु अपना स्थान छोरकर नहीं जाते और ऊष्मा को एक अणु दूसरे अणु तक हस्तांत्रिक करता रहता हैं। यह सबसे सुस्त विधि हैं। 

2) संवहन -

 इस विधि में ऊष्मा का संचरण अणुओ के हस्तान्तरण से होता हैं। यह विधि द्रव तथा गैस में देखी जाती हैं।  जैसे- वायुमंडल, फ्रिज ,चाय की केतली संवहन द्वारा गर्म होती हैं।

3) विकिरण(Radiation)-

यह ऊष्मा संचरण की सबसे तेज विधि हैं। इसमें माध्यम के कण भाग नहीं लेते हैं।  यह प्रकाश के चाल से गति करता हैं। जैसे- सूर्य, लकड़ी, से आग तापना etc बिकिरण द्वारा ऊष्मा होता हैं। 

नोट- वायु में उष्मा का क्षैतिज संचरण अभिवहन कहलाता हैं। 
   
  - जब किसी द्रव को गर्म करते है तो उसकी ऊष्मा वाष्प के रूप में निकलने लगती है जिसे वाष्पन कहते हैं। 

किसी धातु के कप में चाय को रखा जाय और उस कप को धातु के टेबल पर रखा जाय तो चार बिधि द्वारा उष्मा का हानि होगा - चालन , संवहन , विकिरण , वाष्पन।  अतः वह चाय जल्द ठंडा हो जायेगा। 
किन्तु इसी कप को लकड़ी के टेबल पर रखा जाय तो तीन विधि द्वारा ही ऊष्मा की हानि होगी। इसमें चालन विधि नहीं होगी अथार्त यह देर तक गर्म रहेगा।  

➤ Krichoff's का नियम - 

एक अच्छे अवशोषक ही एक अच्छे उतसर्जक होते है अथार्त काली वस्तु अधिक ऊष्मा अवशोषित करती है, जिस कारण वह अधिक ऊष्मा निकलेगी।  

धुप वाला छाता ऊपर से सफेद होना चाहिए और अंदर से काला होना चाहिए। 

यदि धातु के एक गोला को और लकड़ी के एक गोला को समान ऊष्मा देकर गर्म किया जाय और अंधेरे में रख दिया जाय तो धातु का गोला अधिक ऊष्मा निकलेगी और वह चमकेगा। 

समान धातु के दो गोले एक काला और एक सफेद हैं। इसको समान ऊष्मा देकर अँधेरे में रखने पर काली वाली गोला अधिक चमकेगी। 

➤ कृष्ण पिण्ड (Black Body)-

वैसी वस्तु जो अपने ऊपर आने वाली समस्त उष्माओ को सोख ले कृष्ण पिण्ड कहलाती हैं। सभी काली वस्तुय कृष्ण पिण्ड के अंतर्गत आती हैं।  जैसी- काजल 95% ऊष्मा को सोख लेता है। यह सबसे अच्छा कृष्ण पिण्ड हैं। 

➤ ऊष्मा गतिकी का प्रथम नियम - 

यह ऊर्जा संरक्षन पर आधारित है। इसके अनुसार किसी कार्य कर सकने वाली वस्तु को जब हम ऊष्मा (Q) ऊर्जा देते है तो उसका कुछ भाग वस्तु के तापमान आंत्रिक ऊर्जा (🔺U) बढ़ाने में खर्च होती हैं , शेष बचे ऊर्जा(ऊष्मा) से ही वह कार्य करता हैं।  
            Q = 🔺U➕ W 

➤ ऊष्मा गतिकी का दुतिये नियम - 

इसके अनुसार ऊष्मा हमेशा गर्म वस्तु से (उच्च तापमान) से ठंडी वस्तु ( निम्न तापमान) की ओर प्रवाहित होती है अथार्त दुतिये नियम ऊष्मा के प्रवाह को दर्शाता हैं। 


By Prashant


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